Tuesday, April 20, 2010

Dull Life

It's been few days, I felt like writing something. Routine dull life is causing no particular excitement to body/mind. When brain start to question each of our action, we can consider life is stalled or we have something wrong in head. I feel completely sick and isolated when this stage occurs, thoughts are random, actions are erratic and there is no purpose to life. During this stage you just want to end existence.
Whenever I get into this stage first I look into how I tackle this kind of situations in past, in past I used to exercise to get any cobwebs out of my mind, but heavy exercise looks difficult now a days.
Reading some good book is other good option but headache makes it more difficult to relax.
Listening to good bhakti songs was also one of my favorite.. today also I came across couple of good poems from Tukaram and I started feeling little better..


जेथे जातो तेथे तू माझा सांगाती । चालविसी हात धरुनिया ।।
चालो वाटे आम्ही तुझाचि आधार । चालविसी भार सवे माझा ।।
बोलो जाता बरळ करिसी ते नीट । नेली लाज धीट केलो देवा ।।
अवघे जन मज जाले लोकपाळ । सोइरे सकळ प्राणसखे ।।
तुका म्हणे आता खेळतो कौतुके ।जाले तुझे सुख अंतर्बाही ।।
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हेचि दान देगा देवा । तुझा विसर न व्हावा ।।
गुण गाईन आवडी । हेचि माझी सर्व जोडी ।।
न लगे मुक्ती आणि संपदा ।  संतसंग देई सदा ।।
तुका म्हणे गर्भवासी । सुखे घालावे आम्हासी ।।
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पापांची वासना नको दांवू डोळा । त्याहुनि आंधळा बराच मी ।।
निंदेचे श्रवण नको माझे कानी । बधिर करोनि ठेवी देवा ।।
अपवित्र वाणी नको माझ्या मुखा । त्याजहुनि मुका बराच मी ।।
नको मज कधी परस्त्रिसंगती । जनांतुन मातीं उठता भली ।।
तुका म्हणे मज अवघ्याचा कंटाळा । तू एक गोपाळा आवडसी ।।
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जे का रंजले गांजले । त्यासि म्हणे जो आपले ।। १।।
तोची साधू ओळखावा ।। देव तेथे चि जाणावा ।।धृ.।।
मृदू सबाह नवनीत । तैसे सज्जनाचे चित्त ।। २।।
ज्यासि अंपगिता नाही । त्यासि घरी जो हृदयी ।। ३।।
दया करणे जे पुत्रासी । ते चि दासा आणि दासी ।। ४।।
तुका म्हणे सांगू किती । तो चि भगवंताची मूर्ती ।। ५।।

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